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देश प्रदेश में अधिवक्ता सुरक्षा कानून Advocate protection Act क्यों जरूरी है |

*देश प्रदेश में अधिवक्ता सुरक्षा कानून Advocate protection Act क्यों जरूरी है*

*अधिवक्ता की भूमिका*

परिभाषा – अधिवक्ता वह व्यक्ति है, जिसे Advocates Act, 1961 की धारा 2(1)(a) के अंतर्गत राज्य अधिवक्ता परिषद (State Bar Council) में पंजीकृत किया गया हो और जो न्यायालय में वाद–विवाद (practice of law) करने का विधिक अधिकार रखता हो।

अधिवक्ता केवल अपने मुवक्किल (client) का ही प्रतिनिधि नहीं होता, बल्कि वह न्यायालय और संविधान के प्रति भी उत्तरदायी होता है।

*अधिवक्ता की संवैधानिक और विधिक स्थिति*

*संवैधानिक स्थिति –*

भारत का संविधान अधिवक्ता को वाक् स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a)), व्यवसाय करने की स्वतंत्रता (अनु. 19(1)(g)) और विधिक प्रक्रिया का हिस्सा बनने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।

अधिवक्ता संविधान के प्रहरी (guardian) की भाँति कार्य करता है, क्योंकि वह संविधान के प्रावधानों की व्याख्या व संरक्षण में न्यायालय की सहायता करता है।

*विधिक स्थिति –*

अधिवक्ता का नियमन Advocates Act, 1961 तथा Bar Council of India Rules द्वारा किया जाता है।

अधिवक्ता की आचार–संहिता, पेशेवर जिम्मेदारियाँ और अनुशासनात्मक कार्रवाई बार काउंसिल की शक्ति के अंतर्गत आती है।

*अधिवक्ता की भूमिका तीनों अंगों के समक्ष*

*विधायिका (Legislature)*

अधिवक्ता विधायिका को विधि निर्माण में मार्गदर्शन दे सकते हैं।

संसद और विधानमंडलों में अधिवक्ता सदस्य कानून की तकनीकी जटिलताओं को समझाने और विधेयक को संविधान अनुरूप बनाने में योगदान देते हैं।

अधिवक्ता जनता के अधिकारों और कर्तव्यों को विधायिका तक पहुँचाने का माध्यम होते हैं।

*कार्यपालिका (Executive)*

कार्यपालिका के निर्णयों और आदेशों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने या समर्थन करने का अधिकार अधिवक्ता के माध्यम से न्यायालय में आता है।

प्रशासनिक न्यायाधिकरणों और विभिन्न प्राधिकरणों के समक्ष अधिवक्ता नागरिकों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

अधिवक्ता यह सुनिश्चित करते हैं कि कार्यपालिका अपने अधिकारों का दुरुपयोग न करे और विधिक सीमा के भीतर ही कार्य करे।

*न्यायपालिका (Judiciary)*

अधिवक्ता न्यायालय और मुवक्किल के बीच की कड़ी (officer of the court) होता है।

अधिवक्ता न्यायिक प्रक्रिया में निष्पक्षता, तर्क और संविधानसम्मत व्याख्या प्रस्तुत कर न्यायपालिका को सही निर्णय लेने में सहयोग करता है।

अधिवक्ता न्याय तक पहुँच (Access to Justice) को सुनिश्चित करता है, विशेषकर गरीब और वंचित वर्ग के लिए Legal Aid योजनाओं के अंतर्गत।

*अधिवक्ता का सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और संवैधानिक महत्व*

*सामाजिक महत्व*

अधिवक्ता समाज में न्याय, समानता और विधि का शासन (Rule of Law) स्थापित करने का माध्यम होता है।

वह समाज में विधिक जागरूकता फैलाता है और कमजोर वर्गों को न्याय दिलाने में अग्रणी भूमिका निभाता है।

*आर्थिक महत्व*

आर्थिक नीतियों, कराधान, व्यापारिक विवादों, श्रम कानूनों आदि में अधिवक्ता नागरिकों और उद्योगों दोनों की सहायता करता है।

आर्थिक न्याय (Directive Principles of State Policy, अनुच्छेद 38, 39) की प्राप्ति अधिवक्ताओं के सक्रिय सहयोग से संभव होती है।

*राजनीतिक महत्व*

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अधिकांश नेता अधिवक्ता ही थे (महात्मा गाँधी, पंडित नेहरू, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर)।

अधिवक्ता लोकतंत्र की आत्मा “संविधान” की रक्षा करने में राजनैतिक चेतना जगाने वाले स्तंभ हैं।

*संवैधानिक महत्व*

अधिवक्ता संविधान की प्रस्तावना में वर्णित न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूल्यों की रक्षा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

वह मूल अधिकारों (Fundamental Rights) के उल्लंघन पर जनहित याचिका (PIL) व रिट याचिका (Article 32, 226) दाखिल कर नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा करता है।

 *निष्कर्ष*

अधिवक्ता केवल “वाद लड़ने वाला व्यक्ति” नहीं है, बल्कि वह लोकतंत्र का प्रहरी, समाज का मार्गदर्शक और संविधान का रक्षक है। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका – तीनों अंगों को अधिवक्ता की विशेषज्ञता, तर्कशक्ति और संविधानसम्मत दृष्टिकोण की निरंतर आवश्यकता रहती है।

*अधिवक्ता की बहुस्तरीय भूमिका*

*वक्ता (Speaker) के रूप में*

अधिवक्ता तर्क, प्रमाण और कानून के आधार पर न्यायालय में मुवक्किल की ओर से प्रभावशाली वाक्-कला का प्रदर्शन करता है।

समाज के सामने विधिक एवं संवैधानिक प्रश्नों को उठाकर जागरूकता फैलाता है।

संसद, मंचों, संगोष्ठियों और जनचेतना अभियानों में वक्तृत्व से लोकतंत्र को मजबूत करता है।

*प्रवक्ता (Spokesperson) के रूप में*

अधिवक्ता मुवक्किल और न्यायालय के बीच सेतु होता है।

नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का प्रवक्ता बनकर अदालत और प्रशासन के समक्ष पक्ष रखता है।

जनता की समस्याओं को विधायिका व कार्यपालिका तक पहुँचाकर समाधान का मार्ग प्रशस्त करता है।

*अधिवक्ता (Advocate) के रूप में*

न्यायालय में कानून का विशेषज्ञ प्रतिनिधि।

“Officer of the Court” के रूप में न्यायपालिका की सहायता।

कानून के शासन (Rule of Law) और समान न्याय (Equality before Law, अनु. 14) को सुनिश्चित करता है।

*संवैधानिक अधिकारों के प्रणेता के रूप में*

अधिवक्ता समाज के कमजोर वर्गों, दलितों, महिलाओं, बच्चों व अल्पसंख्यकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है।

जनहित याचिका (PIL) और रिट याचिका (अनुच्छेद 32 व 226) द्वारा नागरिकों को न्याय दिलाता है।

स्वतंत्रता संग्राम में डॉ. भीमराव अंबेडकर, महात्मा गांधी, नेहरू जैसे अधिवक्ता संवैधानिक अधिकारों के निर्माता और प्रणेता बने।

*अधिवक्ता की भूमिका : पुलिस प्रशासन और नागरिक अधिकार*

*पुलिस प्रशासन के समक्ष*

अधिवक्ता यह सुनिश्चित करता है कि पुलिस संविधान और विधि की सीमाओं में रहकर कार्य करे।

गिरफ्तारी, तलाशी, हिरासत और पूछताछ में अधिवक्ता नागरिकों को विधिक सुरक्षा प्रदान करता है।

यदि पुलिस द्वारा मानवाधिकार हनन, गैरकानूनी हिरासत या उत्पीड़न होता है तो अधिवक्ता न्यायालय में रिट याचिका दाखिल करता है।

*संवैधानिक और विधिक व्यवस्था में*

अधिवक्ता अनुच्छेद 20, 21 और 22 (गिरफ्तारी व स्वतंत्रता के अधिकार) के अंतर्गत नागरिकों की रक्षा करता है।

अधिवक्ता न्यायालयीन जमानत, अपील, प्रतिरक्षा (defence) आदि में आरोपी की विधिक सहायता सुनिश्चित करता है।

*Legal Services Authorities Act, 1987 *के तहत अधिवक्ता गरीब और असहाय लोगों को मुफ्त विधिक सहायता दिलाने में सहायक है।

*सुनिश्चित नागरिक अधिकारों की सुरक्षा*

जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनु. 21)

समानता का अधिकार (अनु. 14)

गिरफ्तारी के समय मौन रहने और वकील से परामर्श का अधिकार (अनु. 22)

निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार (Natural Justice)

इन अधिकारों की व्यावहारिक सुरक्षा अधिवक्ता के हस्तक्षेप से ही संभव होती है।

✅ निष्कर्ष

अधिवक्ता केवल मुकदमे लड़ने वाला नहीं, बल्कि वह अधिवक्ता के रूप में–

👉 समाज का वक्ता है जो जागरूकता फैलाता है,

👉 नागरिकों का प्रवक्ता है जो उनकी आवाज बनता है,

👉 न्यायालय का अधिवक्ता है जो विधिक तर्क रखता है,

👉 और लोकतंत्र का संवैधानिक प्रणेता है जो अधिकारों की रक्षा व विकास करता है।

*पुलिस प्रशासन और राज्य तंत्र के समक्ष भी अधिवक्ता नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की ढाल (shield) है।*

*देस में संविधानिक विधि और मानव अधिकारों की व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए कार्यपालिका विधायिका न्यायपालिका के शासन प्रशासन और पुलिस प्रशासन के समक्ष देशवासियों के संवैधानिक मूल अधिकारों की रक्षा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए देश प्रदेश में  “एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट advocate protection Act”  अभिलंब देश प्रदेश की विधायिका द्वारा पास कर लागू किया जाए।*

लेखक सुरेंद्र कुमार ऐंडवोकेट

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